चलती ट्रेन में चुदाई – भाग १

maakabur 2023-05-02 Comments
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ध्यान दे: इस कहानी में औरत ने पति और दो दूसरे मर्दों को उकसाने के लिए धन का आदान-प्रदान करबाया। लेकिन चुदाई के बाद उसने सारा रुपया वापस कर दिया। सारी चुदाई मुफ़्त में हुई।

मेरा नाम अनुराधा है। सभी मुझे अनु कह कर ही पुकारते हैं। मेरे दोनों बेटे भी घर में पति के सामने भी अनु कह कर ही पुकारते हैं। उनका कहना है कि मैं किसी भी तरह से उनकी मॉं नहीं लगती, हम उम्र ही लगती है। दूसरों के सामने ज़रूर मॉं कह कर पुकारते हैं।

ख़ैर यह कहानी बेटे के बारे में नहीं। पति के सामने चलती ट्रेन में दो आदमियों द्वारा चुदाई की कहानी है।

मैंने स्कूल पास किया और कुछ ही महीनों के अंदर एक सरकारी दफ़्तर में काम कर रहे एक क्लर्क से शादी हो गई। जैसा क़रीब क़रीब सभी लड़कियों के साथ होता है, शादी के पहले कई लड़कों और आदमियों ने मेरी चूची मसली, चूतड़ दबाया।

लेकिन मेरी क़िस्मत!अपनी एक सहेली के बाप को मैं बहुत पसंद करती थी। मैं उसके साथ चुदाई के लिए भी तैयार थी। एक बार उसे पूरा मौक़ा मिला। हम क़रीब दो घंटो अकेले साथ रहे लेकिन उसकी हिम्मत ही नहीं हुई कि मुझे नंगा भी कर सके।

मेरे पति की क़िस्मत, मेरी चूत उनके लंड के लिए कुंवारी ही रही। और मेरे पति रंजन गुप्ता ने सुहाग रात को चोदते चोदते रुला दिया। नहीं नहीं करते रहने पर भी हरामी ने पहली रात ही तीन बार चोदा। सच कहूँ तो बहुत मस्त कर दिया गुप्ता बाबू ने। मैं अपने सभी पुराने आंशिक को भूल गई।

शादी के ६ साल के अंदर ही मैंने गुप्ता जी के दो बेटों को जन्म दिया। दूसरे बेटे के जन्म के एक साल के अंदर ही मेरे पति बड़ा बाबू बन गये। लेकिन साथ ही तबादला भी हो गया। एक छोटे शहर से हम लखनऊ आ गये।

मैं क्या, मेरे पति के लिए भी लखनऊ बहुत बड़ा शहर था। नये लोग नई जगह। वहाँ एक आदमी ने हमारी बहुत मदद की। यहाँ बता दूँ कि मेरे पति पीडब्ल्यूडी में बड़ा बाबू थे। मदद करने बाले आदमी का नाम माधव चन्द्र शर्मा था। मेरे पति उनसे पहले कई बार मिल चुके थे। इसलिए उन्होंने माधव की मदद ली।

तबादला होने के बाद गुप्ता जी पहली बार लखनऊ आये तो माधव ने उन्हें अपने ही घर में रखा। एक बढिया सोसाइटी में तीन कमरे का मकान भी भाडे पर दिलवा दिया। एक महिना के बाद गुप्ता जी हमें भी लखनऊ ले कर आ गये।

मैं माधव और उनके परिवार से पहली बार ही मिल रही थी लेकिन माधव हमारे साथ ऐसा व्यवहार कर रहा था मानो हमें सालों से जानता हो। उसकी घरवाली कल्याणी मुझे बहुत पसंद आई। मैंने इस बात को गंभीरता से नहीं लिया कि माधव की जवान बेटी सपना मेरे पतिदेव के साथ काफ़ी घुलमिल गई है।

एक दिन दोपहर में हम और कल्याणी घर में अकेले थे। वो मुझसे १०-१२ साल बड़ी थी।

कल्याणी – अनु, तुम इतनी खुबसूरत हो फिर अपने बदन पर ध्यान क्यों नहीं देती हो। अगर ऐसा ही चलता रहा तो कुछ ही महिनों में तुम मेरी दीदी लगने लगेगी।
मैं – दीदी, जब तक बच्चे नहीं हुए थे तब तो किसी ने मेरी ओर नहीं देखा। फिर अब २-२ बच्चे बाली औरत की ओर कौन देखेगा? किसके लिए अपनी जवानी को सँभालूँ?

कल्याणी – तु नहीं जानती है कि तु कितनी सुंदर और मस्त है। लेकिन तु ऐसे ढीले ढाले कपड़ों में रहती हो कि कोई तुम्हारी ओर ध्यान ही नहीं देता।

मैं नहीं चाहती थी, लेकिन कल्याणी ज़िद कर मुझे एक जीम् में ले जाने लगी। दोपहर में ४ से ५ तक मेरे बच्चों को कल्याणी की बेटी सपना सँभालती थी। और हम दोनों एक घंटा कसरत करते थे। मैंने ध्यान दिया कि कसरत सिखाने समय वहाँ का इंसट्रक्टर हमारे बदन को जहां तहां दबाता था, सहलाता था। मैंने कल्याणी से शिकायत की।

कल्याणी— सहलाता है, दबाता है तो उसे मज़ा लेने दो। हमें भी तो मज़ा आता है। अगर हम थोड़ी छूट दे दें तो हमें चोदेगा भी। देखती नहीं कैसा गठीला बदन है इस जवान आदमी का। तुम्हारे गुप्ता जी बहुत ही खुबसूरत जवान है। लेकिन वैसे लोगों को मेरी बेटी सपना जैसी जवान लड़की बहुत पसंद करेंगी। लेकिन हमारे जैसी २-२ बच्चों की मॉं को ऐसा ही हट्टा कट्ठा आदमी खुश कर सकता है। बोल चुदवायेगी?

मैं – चुप हरामजादी। तुझे चुदवाना है चुदवा ले, मैं माधव से नहीं कहु्गीं।

तब उसने ऐसी बात कही जो मैंने कभी उम्मीद नहीं की थी।

कल्याणी – तु बोलेगी तो भी कुछ फ़र्क़ नहीं पड़ेगा। तुम्हारा माधव खुद अपना काम निकलवाने के लिए मुझे कई लोगों के पास भेजता है। अनु, सच कहती हूँ, नये आदमी, नये नये लंड से चुदवाने में बहुत मज़ा आता है।

कल्याणी की बातों से मैं नाराज़ नहीं हुई। हॉ इतना ज़रूर हुआ कि मैंने इंसट्रक्टर को कभी रोका नहीं। वो कसरत सिखाने के बहाने चूची और चुत्तरों को दबाता रहा। लेकिन उसने हम दोनों में से किसी के साथ चुदाई करने की बात नहीं की।

तीन महिना गुज़रते गुजरते मुझे अपने बदन में खुद बहुत फ़र्क़ आने लगा। हमने तीन और महिना वहाँ ट्रेनिंग ली उसके बाद घर में ही कसरत करने लगी। गुप्ता जी ने कहना शुरु किया कि मेरे साथ की चुदाई में उन्हें जो मज़ा अब आता है वो मज़ा पहले कभी नहीं आया था।

मैंने एक बात और देखी। माधव का मेरे घर आना जाना बहुत बढ़ गया। पहले भी मेरे लिए बच्चों के लिए उपहार लाता था। लेकिन अब बहुत मंहगे उपहार लाने लगा था और वो भी जल्दी जल्दी। लेकिन उसने एक बार भी मेरे साथ प्यार का इज़हार नहीं किया।

ना ही उसने कभी मुझे छुने की कोशिश ही की। होली में भी उसने सिर्फ़ गालों में ही रंग लगाया। जब कि मैंने देखा कि गुप्ता जी ने माधव की जवान बेटी सपना के गालों पर ही नहीं उसकी दोनो चूचियों को भी मसला और चूतड़ों को भी दबाया।

देखा कि सपना भी प्यार से गुप्ता जी को जहां तहाँ रंग लगा रही है। मैं थोड़ा अलग हट गई। मुझे आस पास ना देख सपना ने गुप्ता जी को अपनी ओर खींचा और दोनो बॉंहों में बांध खुब चुमा। पैंट के उपर से लौडा को भी मसला।

मैंने गुप्ता जी या सपना या कल्याणी से इस बारे में कुछ नहीं कहा। मुझे ऐसा लगा कि गुप्ता जी और सपना चुदाई कर चुके हैं। रात में भी मैंने गुप्ता जी से कुछ नहीं कहा। लेकिन जब वो मुझे चोद रहे थे, तभी मैंने फ़ैसला किया कि पहला मौक़ा मिलते ही माधव या किसी और से ज़रूर चुदवाऊँगी।

मुझे और मेरी बूर को दूसरे लंड की ज़रूरत महसूस होने लगी थी। तब तक मेरी और कल्याणी के दोस्ती को २ साल से ज़्यादा हो गया था। कल्याणी ने मुझे कभी उस जीम के ट्रेनर या किसी और से चुदवाने की ज़िद नहीं कि।

लेकिन वो अक्सर दूसरे के साथ की अपनी चुदाई के क़िस्से को खुब मज़े लेकर सुनाती थी। कल्याणी के अनुसार उसने शादी के पहले २ आदमियों से और बाद में सात दूसरे आदमियों से चुदवाया था, चुदवाती थी। और उसके पति माधव को सब मालूम था।

होली को दो महिना हो गये और अचानक एक दिन गुप्ता जी ने कहा कि उनकी छुट्टी मंज़ूर हो गई है। उन्होंने कहा कि अगले हफ़्ते हम पहले गौहाटी और बाद में दार्जिलिंग जाँयेंगे। दो दिन बाद ही मेरे सास ससुर आ गये। इनके आने की मुझे कोई खबर नहीं थी। रात में मैंने पुछा।

गुप्ता जी – इस बार टूर पर सिर्फ़ हमदोनों ही जायेंगे। बच्चे मॉं बाबू के साथ रहेंगें।

मैंने बहुत ज़िद की बच्चों को साथ ले जाने की। लेकिन गुप्ता जी अपनी ज़िद पर अड़े रहे। अगले शनिवार की सुबह हम नई दिल्ली पहुँचे और दोपहर २ बजे एक ट्रेन के डब्बे में घुसे। गर्मी का महिना था लेकिन डब्बा में घुसते ही मेरा पूरा बदन सर्द हो गया।

मैं पहले भी ट्रेन में कई बार बैठी थी। लेकिन उस दिन जिस डब्बे में घुसी वैसे डब्बे में पहले कभी नहीं बैठी थी। अपनी सीट पर बैठी। हमारे सामने वाली सीट ख़ाली थी। गुप्ता जी ने बताया कि हम राजधानी एक्सप्रेस में बैठे हैं। उन्होंने यह भी कहा कि यह सबसे मंहगी ट्रेन है।

मैं – इतना खर्चा करने की क्या ज़रूरत थी
?
गुप्ता जी – रानी, जहॉं दूसरे ट्रेन ४०-४२ घंटा समय लेंगे यह ट्रेन हमें २६ घंटा में ही पहुँचा देगी। सच कहता हूँ तुम्हें बहुत बढिया लगेगा।

मैं – बढिया तो तब लगेगा जब मैं ज़िंदा रहुंगी। इस ठंडी में मैं मर ही जाउंगी।

मैं बोल ही रही थी कि पर्दा हटाकर २ जवान आदमी अंदर घुसे। एक ने उपर के बर्थ से एक कंबल उठाकर मेरे उपर रखा।

वो आदमी – मैडम, डरिये मत, हम आपको नहीं मरने देंगे। ये कंबल ओढ़ लीजिए। थोड़ी ही देर में आप गर्म हो जायेंगीं।

दोनों आदमी सामने के बर्थ पर बैठ गये। वे दोनों बैठे और ट्रेन चलने लगी।

गुप्ता जी – आप लोग थोड़ी और देर से आते तो आपकी ट्रेन छूट जाती।

एक आदमी – हमारी क़िस्मत इतनी ख़राब नहीं कि आप दोनों जैसे खुबसूरत जोड़ी के साथ समय गुज़ारने का मौक़ा छूट जाये। हम गौहाटी जा रहे हैं। आप लोग?

गुप्ता जी – हम भी गौहाटी तक चल रहे हैं।

दूसरा आदमी – अच्छा है, सफ़र बढिया गुजरेगी।

गुप्ता जी ने देखा कि नहीं मालूम नहीं। मुझे साफ़ दिखाई दिया कि दूसरे आदमी ने मुझे देखते हुए वींक किया। मैंने मन ही मन कहा कि, ‘अगर तुम दोनों में हिम्मत है तो मैं अपने पति के सामने तुम दोनों से चलती ट्रेन में चुदवाने को तैयार हूँ।‘

मैंने ध्यान दिया। एक २५-२६ साल का था और दूसरा २८-३० साल का। दोनों का बदन बढ़िया था। न तो दोनों में से कोई गुप्ता जी जैसा खुबसूरत ही था न ही किसी का माधव जैसा बढिया परसॉनालिटी ही था। लेकिन दोनों बढिया दीख रहे थे। दोनो ने सिल्क का पैजामा कुर्ता पहना था।

दोनो के गले में सोने की मोटी चेन थी। दोनों हाथों में दोनो ने ५-५ अंगुठीयॉं पहना था। दोनो ने अपना अपना एक बडा सूटकेस अपने बर्थ के नीचे रखा। एक एक ब्रीफ़केस को बगल में दबाकर दोनो हमारे सामने बैठ गये। साफ दीख रहा था कि दोनों बहुत अमीर थे।

मैं चुप बैठ सुन रही थी। दोनों ने गुप्ता जी को बातों में उलझा कर रखा। गुप्ता जी से उन लोगों ने सारी जानकारी ले ली कि हम कहाँ रहते हैं, गुप्ता जी कहॉं काम करते हैं, इत्यादि। अपने बारे में उन्होंने बताया कि वे सुपारी का धंधा करते हैं। उत्तरी राज्यों को सुपारी सप्लाई करते हैं।

हर महिना कम से कम २ बार दिल्ली का दौरा करते हैं, नया ऑर्डर लेते हैं और पुराना बकाया वसुल करते हैं। उन्होंने बताया कि दोनों सगे भाई हैं। दोनों की शादी हो गई है। बड़े भाई का नाम गोपाल था और छोटे भाई का नाम था ब्रज। दोनों में मुझे बड़ा भाई गोपाल ज़्यादा पसंद आया।

वेटर ने पहले हम चारों को पानी का बोतल दिया। वेटर चाय का ट्रे लेकर आया तो उन्होंने ने ही हमारे लिए चाय बनाया। चाय का कप मेरे हाथों में थमाते समय छोटे भाई ने मेरी अंगुलियों को दबा दिया। न तो मैं मुस्कुराई न ही चेहरा ही बनाया।

हमने चाय पीया। मुझे पेशाब लगा। मैंने धीरे से गुप्ता जी से कहा। हम दोनों अपने सीट से खड़े हुए। गुप्ता जी पहले पर्दा हटाकर बाहर गये। तुरंत छोटे भाई ने मेरा हाथ दबा कर कहा, “बहुत ही ज़्यादा सुंदर हो रानी।“

अपना हाथ झटक कर मैं भी बाहर आ गई। मैंने गुप्ता जी से कोई शिकायत नहीं की। दस मिनट बाद हम वापस लौटे। लौटते समय मैं दोनों से दूर ही रही। ट्रेन को चालू हुए एक घंटा से ज़्यादा हो गया था। मुझे अब वैसी ठंड नहीं लग रही थी। मैंने कंबल हटा दिया।

दोनों ने फिर गुप्ता जी को बातों में उलझाया।

गोपाल – हमारा आप जैसे सरकारी दफ़्तरों में काम करने बाले बहुत लोगों से पाला पड़ता है। सच सच बताइये गुप्ता जी। इस राजधानी ट्रेन में गौहाटी जाने आने का खर्चा, एक हप्ता बढिया होटल में रहने का खर्चा आप अपनी तनख़्वाह से नहीं कर सकते। फिर कौन आपका खर्चा उठा रहा है?

गुप्ता जी ने बहुत कहा कि वे खुद अपने पैसे से सब खर्चा उठा रहे हैं लेकिन वे नहीं माने।

ब्रज – ठीक है, आप नहीं बताना चाहते तो मत बोलिए। लेकिन हम विश्वास से कह सकते हैं कि आप दोनों की छुट्टी का पूरा खर्चा आपका कोई ठीकेदार ही उठा रहा है। लेकिन आप ने कभी सोचा है कि वो आदमी आप के उपर इतना खर्च, कम से कम २००००/- का खर्चा क्यों कर रहा है?

मुझे नहीं मालूम था कि ये ट्रेन का किराया या होटल का खर्चा का इंतज़ाम गुप्ता जी ने खुद किया है या माधव या फिर किसी दूसरे ठीकेदार ने किया है। गुप्ता जी ने सीधा जवाब नहीं दिया। बात चीत फिर धन दौलत कमाने के तरीक़ों पर आ गई।

गुप्ता जी- हम भी बहुत पढ़ाई करते हैं। मेहनत करते हैं लेकिन कुछ लोगों को छोड़ बाक़ी लोग ग़रीबी में ही रहते हैं।

गोपाल – पढ़ाई करना, मेहनत करना ज़रूरी है लेकिन सफल होने के लिए कुछ और भी चाहिए।

गोपाल ने मेरी तरफ़ देखते हुए कहा। मैं चुप नहीं रहना चाहती थी।

मैं – पढ़ाई और मेहनत के सिवा और क्या चाहिए?

गोपाल – बढिया क़िस्मत और उससे भी ज़रूरी है सही समय पर मौक़ा का भरपूर फ़ायदा उठाना।

बढिया क़िस्मत तो हम समझ गये लेकिन मौक़ा का फ़ायदा उठाने बाली बात समझ नहीं आई।

मैं – बढिया क़िस्मत तो ठीक है। लेकिन ये मौक़ा का फ़ायदा उठाना, मतलब?

दोनों भाइयों ने एक दूसरे की तरफ़ देखा।

ब्रज – मैडम, आप अपना ऑंचल नीचे गिराइये, हम आपको ५००/- देंगे।

“आप पागल हो गये हैं क्या?” हम दोनों ने साथ कहा।

गोपाल – हम जानते थे कि आप दोनों ऐसा ही जवाब देंगे। इसीलिए कहा ना कि बहुत कम ही लोग मौक़ा का फ़ायदा उठाते हैं।

दोनों भाइयों को एक दूसरे की बढिया समझ थी।

ब्रज – आप शायद हमेशा साड़ी ही पहनती है। तो आप जानती होंगी कि दिन भर में सैंकड़ों बार ऑंचल आप से आप कंधा और छाती से सरक जाता है। हम आपको ५००/- दे रहें है फिर भी आप मौक़ा का फ़ायदा नहीं उठा रही हैं। हमारे घर की कोई भी औरत होती तो आपके गुप्ता जी के एक बार कहने पर तुरंत ऑंचल गिरा कर ५००/- छीन लेती।

बात तो उसने ठीक ही कही। ऑंचल ऐसे ही बार बार चूचियों के उपर से फिसलता रहता है।

गोपाल – चलिए हम आप को एक और मौक़ा देते हैं। ५०० नहीं १०००/- देंगे, आँचल को नीचे गिरने दीजिए।

एक हज़ार छोटी रक़म नहीं थी। बच्चों के पूरे महीने के दूध के खर्चा से ज़्यादा था। मैंने गुप्ता जी से ऑंख के इशारे रे पूछा। उन्होंने ना हॉं कहा ना ही मना किया।
मैंने ऑंचल को हाथ नहीं लगाया। बदन को हल्का सा झटका दिया और ऑंचल नीचे गिर गया। मैंने चूचियों को सामने की ओर ठेला। दोनों भाई घूर मेरी जवानी को देखते रहे। मैं उनके सामने पहली बार मुस्कुराई।

मैं – लगता है पहली बार ही देख रहे हो!

ब्रज – नहीं ऐसी बात नहीं। घर में पत्नी है, बहन है, भाभी है और मॉं भी है। जब बाहर रहता हूँ तो कोई भी दिन ऐसा नहीं होता जब हमारे साथ औरत न रहती हो। पिछली पूरी रात एक औरत हम दोनों भाई के साथ थी। स्टेशन के लिए निकलने के पहले भी एक कॉलेज की लड़की को हम दोनों ने चोदा। लेकिन सच कहता हूँ, जितनी बढिया चूची आपकी है वैसी चूची पहले कभी नहीं देखी।

इस आदमी ने खुल कर चुदाई और चूची की बात की। मैंने पहले ही फ़ैसला कर लिया था कि गुप्ता जी मुझे छोड़ दें तो छोड़ दें। लेकिन ये दोनों अगर हिम्मत करेंगे तो मैं चलती ट्रेन में ही पति के सामने चुदवा लुंगी। गोपाल ने मेरे हाथ में एक हज़ार रखा।

गोपाल—- मैडम, एक हज़ार तो आपने ले लिया। अब ब्लाउज़ को बदन से बाहर निकालिए हम आपको ५ हज़ार देंगे।

गुप्ता जी चुप रहे।

मैं – नहीं, कभी नहीं। क्या आपके घर की औरतें ऐसा करती हैं?

मेरी बात सुन दोनों ज़ोर से हंसे।

ब्रज – गुप्ता जी। आप होटल के बदले हमारे घर में हमारे साथ रहिए। हमारे घर में ५२ साल की हमारी मॉं से लेकर १८ साल की मस्त जवान बहन को मिलाकर सात औरते हैं। सभी एक से बढकर एक मस्त माल है। ५२ साल की उम्र में भी हमारी मॉं जवान लड़कों को पागल करती हैं। गुप्ता जी आपको जो भी पसंद आये उसे ५०००/- देकर ब्लाउज़ खोलने बोलिए, वो तुरंत ब्लाउज़ बाहर निकाल फेकेगी।

मुझे सुनकर भी विश्वास नही हो रहा था कि कोई आदमी अपनी ही मॉं के बारे में, घर की दूसरी औरतों के बारे में ऐसी बात कह सकता है। मैं दोनों को घूर घूर कर देख रही थी।

क्या अनु ने दोनो से पति के सामने चुदवाया? पढिये अगले भाग में.

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